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    ऊबना - ओशो

    bored - osho
     


    ऊबना - ओशो 


    मैंने सुनी है एक कहानी कि एक आदमी अंधा आदमी एक बहुत बड़े भवन में कैद कर दिया गया है। हजारों दरवाजे हैं उस भवन में, सब बंद हैं, सिर्फ एक दरवाजा खुला है। और वह अंधा आदमी एक - एक दरवाजे को टटोलते हुआ घूमता है, दरवाजा बंद, दरवाजा बंद, दरवाजा बंद, घूमते, घूमते घूमते उस दरवाजे के पास आता है जो दरवाजा खुला है। लेकिन उसे खुजान चली और उसने सिर खुजाया और वह दरवाजा चुक गया, वह फिर आगे के दरवाजे पर टटोल रहा है, वह फिर बंद है, फिर वहां से घूमता है, घूमता है, घूमता है फिर वहां आता है और फिर थक जाता है । सब दरवाजे बंद हैं, ऊब जाता है और फिर दो-चार दरवाजे नहीं टटोलता फिर वह दरवाजा चुक जाता है।

    लेकिन क्या करेगा अंधा आदमी ? फिर टटोलना शुरू करता है, ऐसी कहानी चलती है कि वह बार-बार उस दरवाजे को चुक जाता है जो खुला है, जहां से वह निकल सकता है, वह चुक जाता है।

    कहानी के सच होने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन हम वर्तमान के दरवाजे को निरंतर चुक जाते हैं। पर वही खुला है सिर्फ, और बड़ा संकरा दरवाजा है। क्योंकि हमारे हाथ में क्षण का हजारवां हिस्सा ही होता है एक बार में, दो हिस्से भी नहीं होते। तो फिर क्षण का एक हिस्सा हमारे हाथ में है वही अस्तित्व है, भारी एक लकीर एग्जिस्टेंस की वही है। और उसे हम चुक जाते हैं, क्योंकि मन या तो पीछे की सोचता रहता है या आगे की सोचता रहता है।

    तो मैं आपको यह कह रहा हूं कि कैसे आप चुक गए? आपसे यह नहीं कह रहा हूं कि कैसे आप पा लेंगे। लेकिन वह कि इस भांति आप चुक गए। उस अंधे आदमी से मैं यह कहूंगा कि तूने खुजाया उसमें तू चुक गया, अब किसी दरवाजे पर खुजाना मत। तू ऊब गया, घबड़ा गया और दो-चार दरवाजे तूने बिना टटोले छोड़ दिए। अब तू मत घबड़ाना, अब मत नहीं तो फिर चुकने का डर संभव हो।

    ऊबना, वर्तमान में होना दरवाजे पर खड़े हो जाना है और ऐसा कभी न हुआ कि जो आदमी वर्तमान में खड़ा हो गया है उस आदमी को परमात्मा से क्षण भर के लिए भी वंचित रहना पड़ा हो, ऐसा कभी हुआ ही नहीं ।

     - ओशो 

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